अल्लामा इकबाल, जिन्हें "allama iqbal islamic shayari" (पूरब का कवि) के रूप में भी जाना जाता है, उर्दू और फारसी साहित्य के एक महान शायर थे। उनके काव्य में इस्लामिक विचारधारा, मुसलमानों की दुर्दशा, और उम्मत-ए-मुस्लिम की पुनरुद्धार की आवाज़ गूंजती है। उनकी शायरी न केवल अदब और साहित्य की ऊँचाईयों को छूती है, allama iqbal poetry,allama iqbal shayari,allama iqbal,allama iqbal shayari islamic,allama iqbal ki shayari,dr allama iqbal shayari,allama iqbal shayari status,iqbal shayari,shikwa allama iqbal,allama iqbal islamic poetry,allama iqbal sher,dr allama iqbal,allama iqbal poetry || shayari status || short poetry || #shorts,allama iqbal quotes,iqbal shayari in urdu,iqbal shayari gazal,allama iqbal ke sher,iqbal poetry,shikwa allama iqbal voice बल्कि यह इस्लामी शिक्षाओं, आत्म-संवर्धन और मुस्लिम समुदाय के उत्थान का भी प्रतीक है। इस लेख में हम अल्लामा इकबाल की इस्लामिक शायरी के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
अल्लामा इकबाल का परिचय और उनके शायराना सफर की शुरुआत
अल्लामा इकबाल का पूरा नाम मुहम्मद इकबाल था, उनका जन्म 9 नवंबर 187 को सियालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सियालकोट में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए यूरोप चले गए, जहाँ उन्होंने फिलॉसफी और लॉ में उच्च शिक्षा प्राप्त की। इकबाल की शायरी का सफर इसी दौरान शुरू हुआ, जहाँ उन्होंने इस्लामिक दर्शन और मुस्लिम समुदाय की समस्याओं पर अपनी कलम चलाई।
इस शेर में इकबाल ने ख़ुदी (आत्मा) के महत्व पर जोर दिया है, जो इस्लामिक दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।
ख़ुदी को मज़बूत करने का संदेश उन्होंने अपनी अधिकतर शायरी में दिया, ताकि इंसान अपने अंदर की शक्तियों
को पहचान सके और अल्लाह के करीब पहुँच सके
Allama iqbal islamic shayari 2025
ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है।
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिंदी हैं हम, वतन है हिंदोस्तां हमारा।
सजदे किए हैं लाखों मगर ये वो सजदा नहीं,
सजदा है इक़बाल का जिसने मिटा दी बंदगी।
मुद्दतों दुनिया में इन्सां का हसीं चेहरा है,
उम्र-ए-रवाँ, ज़ात-ए-मुहम्मद का नक़्श-ए-क़दम है।
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Allama iqbal islamic shayari in hindi
सितारों से आगे जहाँ और भी हैं,
अभी इश्क़ के इम्तिहान और भी हैं।
लबों पर कभी उसके बद्दुआ नहीं होती,
बस इक मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुनत पे फ़िदा नहीं होती।
जिन्हें मैं ढूंढता था आसमानों में,
ज़मीं पर मिल गए वो लोग यहाँ।
ख़ुदा अगर दिलों में है, तो दर-ब-दर क्यों हैं,
वो हैं इमां के फ़रिश्ते, जो दिलों में हैं बसर।
Allama iqbal islamic shayari in urdu
यक दिली से मिल कर रहो तो हार क्या है,
हर दिल में बसती है मोहब्बत का चिराग़।
"ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे, बता तेरी रज़ा क्या है।
लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक,
जो दिल से कही बात है, उस में असर होता है।
"इक़बाल भी इक़बाल से आगे बढ़ा तो,
उम्मत-ए-मुस्लिम की जमीं का सितारा हो गया।
Allama Iqbal Islamic Shayari in Hindi
लबों पर कभी उसके बद्दुआ नहीं होती,
बस इक मुहम्मद (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की सुनत पे फ़िदा नहीं होती।
"सितारों से आगे जहाँ और भी हैं,
अभी इश्क़ के इम्तिहान और भी हैं।
निष्कर्ष:
Allama iqbal islamic Shayari अल्लामा इकबाल की शायरी इस्लामिक दर्शन, मुस्लिम समाज की स्थिति, और
आत्म-संवर्धन के विचारों का अद्भुत मिश्रण है। उनकी शायरी ने इस्लामिक दुनिया में एक नया जोश और आत्मविश्वास भरा, जिससे मुसलमानों को अपनी पहचान और अपने धर्म के मूल्यों को पुनः समझने का मौका मिला। उनकी शायरी आज भी इस्लामिक दुनिया के लिए प्रेरणा का स्रोत है और हमेशा रहेगी।
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